अंबरनाथ शिव मंदिर सौंदर्यीकरण के लिए 138.21 करोड़ मंजूर, लेकिन कई सवाल अनसुलझे!


अंबरनाथ: नीतू विश्वकर्मा
महाराष्ट्र सरकार ने अंबरनाथ के 963 साल पुराने प्राचीन शिव मंदिर क्षेत्र के सौंदर्यीकरण के लिए 138.21 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी है। इस ऐतिहासिक मंदिर को विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर विकसित करने की योजना बनाई गई है।
परियोजना को लेकर उठ रहे अहम सवाल
हालांकि, इस महत्वाकांक्षी परियोजना के क्रियान्वयन से जुड़े कई तकनीकी और प्रशासनिक प्रश्न उठ रहे हैं:
1. एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETP) की मंजूरी: सौंदर्यीकरण योजना में मंदिर से आगे एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETP) का निर्माण प्रस्तावित है। लेकिन सवाल यह है कि इसके लिए महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) से अनुमति प्राप्त हुई है या नहीं?
2. पुरातत्व विभाग की अनुमति: अंबरनाथ शिव मंदिर को केंद्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है, जिससे सौंदर्यीकरण कार्य के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की अनुमति अनिवार्य थी। ऐसे में, यह अनुमति किस आधार पर प्रदान की गई?
3. लोक निर्माण विभाग की तकनीकी स्वीकृति: परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट (DPR) प्रस्तुत करने के बाद लोक निर्माण विभाग (PWD) ने तकनीकी स्वीकृति दी, लेकिन यह स्वीकृति कौन से तकनीकी मानकों के आधार पर दी गई?
4. बाढ़रेखा मानक: जलसंपदा विभाग द्वारा अंबरनाथ नगर परिषद (AMC) को भेजे गए पत्र के अनुसार, वालधुनी नदी में जल प्रवाह नहीं है। ऐसे में बाढ़रेखा के मानक कैसे तय किए जाएंगे?
परियोजना की प्रमुख विशेषताएं
मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र का काले पत्थर से सौंदर्यीकरण किया जाएगा।
प्रवेश द्वार, नंदी चौक, पार्किंग, प्रदर्शनी केंद्र, एम्फीथिएटर, सुरक्षात्मक दीवार, सड़कें, स्टेडियम, भक्त निवास, घाट और वालधुनी नदी पर सुरक्षात्मक दीवारों का निर्माण किया जाएगा।
मंदिर क्षेत्र में गंगा घाट की तर्ज पर पूजा और आरती के लिए विशेष घाट बनाए जाएंगे।
परियोजना के कार्यान्वयन का ठेका सावानी हेरिटेज कंजर्वेशन प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया है।
एएसआई की एनओसी के बाद टेंडर जारी
अंबरनाथ नगर परिषद (AMC) को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त होने के बाद सौंदर्यीकरण कार्य के लिए टेंडर जारी किया गया।
हालांकि, परियोजना से जुड़ी तकनीकी और प्रशासनिक मंजूरियों पर स्पष्टता नहीं होने के कारण यह सवाल बना हुआ है कि इतनी बड़ी परियोजना को लागू करने में कोई कानूनी और पर्यावरणीय अड़चनें तो नहीं आएंगी? अब देखना यह होगा कि सरकार इन उठ रहे सवालों का जवाब देती है या नहीं!