उल्हासनगर में जल संकट बरकरार: करोड़ों खर्च, फिर भी प्यासे नागरिक — क्या सिर्फ़ बजट खपत ही है ‘पानी प्रबंधन’?

उल्हासनगर: नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर शहर में नागरिक आज भी घंटों कतार में खड़े रहकर कुछ बाल्टियों पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि नगर निगम (UMC) के रिकॉर्ड्स बताते हैं कि जल आपूर्ति के सुधार के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं।
2021 से 2024 के बीच, UMC ने जल पाइपलाइनों की मरम्मत और रखरखाव के नाम पर लगभग ₹3.5 करोड़ खर्च किए।
फिर भी ज़मीनी हालात जस के तस हैं —लीकेज युक्त पाइपलाइन,गंदा और दूषित पानी,अनियमित जल आपूर्ति।
इस बीच, अप्रैल 2025 में नगर निगम ने एक और नया टेंडर जारी किया है, ₹2 करोड़ की लागत से नई पाइपलाइन मरम्मत योजना, जो यह सवाल खड़ा करता है:
पिछले वर्षों में खर्च की गई राशि का क्या हुआ? और समस्या बार-बार क्यों लौट रही है?
मूल समस्या: पाइपलाइन नहीं, बल्कि प्रबंधन है!
उल्हासनगर को बरवी डैम और MIDC से प्रतिदिन 140 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) पानी की आपूर्ति होती है, जो शहर की जरूरत के लिए पर्याप्त मानी जाती है।
फिर भी शहर के कई हिस्से – विशेषकर गरीब बस्तियाँ और घनी आबादी वाले क्षेत्र – पानी की भयंकर किल्लत झेल रहे हैं।
कारण स्पष्ट हैं:
पाइपलाइन लीकेज,पानी चोरी,अवैध कनेक्शन,पुरानी और टूटी हुई वितरण व्यवस्था
और अब, खुद नगर निगम के सीवरेज प्रोजेक्ट द्वारा जल पाइपलाइनों को नुक़सान पहुँचना।
‘ब्लू लाइन’ जैसी बहुचर्चित परियोजनाओं पर भी सवालिया निशान
जल संकट को हल करने के लिए लागू की गई ‘ब्लू लाइन’ योजना पर ₹40 करोड़ खर्च किए गए। लेकिन इसके बावजूद भी जल वितरण व्यवस्था ध्वस्त ही नजर आ रही है।
शहरवासियों का सवाल है:
> अगर 3.5 करोड़ पाइप मरम्मत पर, और 40 करोड़ ‘ब्लू लाइन’ पर खर्च हो चुके हैं, तो नागरिक अभी भी पानी के लिए क्यों तरस रहे हैं?
जवाबदेही की मांग, पारदर्शिता की कमी:
जनता के भारी दबाव के बाद, UMC ने अपने स्तर पर जल विभाग की खर्चों की आंतरिक जांच शुरू की है, लेकिन
कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है,न ही किसी समयसीमा की घोषणा की गई है।
UMC का दावा है कि सुधार कार्य चल रहे हैं, लेकिन नतीजे और पारदर्शिता का अभाव नागरिकों को निराश कर रहा है।
प्रशासन से माँग:
अब यह केवल जल आपूर्ति का प्रश्न नहीं,बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और वित्तीय पारदर्शिता का प्रश्न है।
हम UMC और विकास प्राधिकरण से माँग करते हैं:
2020 से 2025 तक हुए जल विभाग खर्च का विस्तृत ऑडिट सार्वजनिक किया जाए।
‘ब्लू लाइन’ और पाइपलाइन मरम्मत योजनाओं की समीक्षा राज्य स्तर पर हो।
ज़िम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों की जवाबदेही तय की जाए।
पानी वितरण व्यवस्था में तकनीकी और स्थायी समाधान तत्काल प्रभाव से लागू हों।
निष्कर्ष:
जहां पानी हर नागरिक का अधिकार है, वहां उल्हासनगर के हालात यह दिखाते हैं कि पानी अब विशेषाधिकार बन गया है।
अगर करोड़ों की योजनाएं सिर्फ़ कागज़ों पर ही रहती हैं, तो यह जनता के साथ सीधा धोखा है।
UMC कमिश्नर मनीषा अव्हाले से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनके कार्यालय से जवाब मिला कि वह बैठक में व्यस्त हैं और टिप्पणी नहीं कर सकतीं।