सिंधू भवन में ईसाई धर्म प्रचार कार्यक्रम को मिली मंजूरी पर हिंदू समाज का तीव्र विरोध – उल्हासनगर मनपा से कार्यक्रम रद्द करने की मांग।






उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर शहर में हिंदू समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं में आक्रोश उस समय फूट पड़ा जब यह जानकारी सामने आई कि दिनांक 26 अप्रैल 2025 को सिंधू भवन में एक ख्रिश्चन मिशनरी कार्यक्रम का आयोजन होने जा रहा है, जिसे उल्हासनगर महानगरपालिका (UMC) ने अनुमति दी है।
हिंदू समाज के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम को लेकर गहरी आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया है कि इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से गरीब और मध्यमवर्गीय हिंदू परिवारों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है, जो कि न केवल गैरकानूनी है, बल्कि समाज में धार्मिक असंतुलन और तनाव पैदा कर सकता है।
एक संयुक्त निवेदन पत्र के माध्यम से, उल्हासनगर शहर के समस्त हिंदू धार्मिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने माननीय आयुक्त तथा प्रशासक, उल्हासनगर महानगरपालिका और परीमंडळ-४ के पोलीस उपायुक्त को आग्रह किया कि:
1. सिंधू भवन जो कि सिंधी समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए समर्पित है, उसे इस प्रकार के धर्मांतरण की आशंका वाले आयोजनों के लिए किसी भी रूप में किराए पर न दिया जाए।
2. 26 अप्रैल को होने वाला कार्यक्रम तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।
3. भविष्य में किसी भी संस्था को महानगरपालिका की संपत्तियाँ किराए पर देते समय कार्यक्रम के उद्देश्यों की स्पष्ट जानकारी ली जाए, और यह सुनिश्चित किया जाए कि वह किसी भी धर्म या समुदाय के विरुद्ध न हो।
4. आयोजक संस्थाओं से शपथपत्र लेकर उनकी मंशा स्पष्ट करवाई जाए।
18 अप्रैल को सामाजिक कार्यकर्ताओं और संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने एकत्र होकर माननीय पोलीस उपायुक्त महोदय को निवेदन सौंपा, और साथ ही उल्हासनगर मनपा को भी व्हाट्सएप द्वारा यह पत्र प्रेषित किया गया।
हिंदू समाज की भावना के खिलाफ कोई निर्णय स्वीकार नहीं किया जाएगा — ऐसा स्पष्ट संदेश देते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चेताया है कि यदि यह कार्यक्रम रद्द नहीं किया गया, तो व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
अपील:
उल्हासनगर महानगरपालिका को चाहिए कि वह इस गंभीर मुद्दे का संज्ञान लेते हुए धर्मांतरण की आशंका वाले कार्यक्रम की अनुमति तुरंत रद्द करे, और भविष्य में इस प्रकार की चूक न हो इसका पक्का इंतजाम करे।
यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, हिंदू समाज की अस्मिता और आस्था का प्रश्न है।