21 वर्षों के संघर्ष के बाद संगीता लहाने- काळे को मिली स्थायी नियुक्ति, दिव्यांगों के अधिकारों की जीत


उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा
दिव्यांग, अपंग, मूकबधिर, अस्थिव्यंग, मंदबुद्धि और दृष्टिहीन विद्यार्थियों के लिए समर्पित भाव से कार्यरत सुश्री संगीता लहाने- काळे को आखिरकार 21 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद न्याय मिला है। उल्हासनगर महानगरपालिका के सर्वशिक्षा समावेश शिक्षण विभाग में मनपा-सहयोगी पद पर पिछले दो दशकों से कार्यरत संगीता लहाने की अब स्थायी नियुक्ति कर दी गई है।
शहर के स्कूलों में शिक्षा से वंचित विशेष विद्यार्थियों के लिए सेवाभावी वृत्ति से कार्य करते हुए संगीता लहाने ने कभी परिणामों की परवाह नहीं की। बावजूद इसके, 21 वर्षों तक उन्हें स्थायीत्व से वंचित रखा गया था।
यह संघर्ष तब और भी मार्मिक हो गया जब वर्ष 2011 में संगीता लहाने के भाई प्रशांत लहाने ने बहन पर हो रहे अन्याय और उपेक्षा के विरोध में महापालिका मुख्यालय के सामने आत्मदाह कर लिया था। यह आत्महत्या प्रशासन को झकझोरने वाली थी, जिसमें भाई ने अपने प्राणों का बलिदान देकर बहन के हक की आवाज बुलंद की।
आज, वर्षों बाद प्रशांत लहाने के बलिदान को न्याय मिला है। संगीता लहाने- काळे को स्थायी नियुक्ति देकर महापालिका ने एक महत्वपूर्ण और देर से लिया गया निर्णय लिया है। यह सिर्फ एक महिला की जीत नहीं, बल्कि दिव्यांग और विशेष बच्चों की शिक्षा के लिए कार्यरत सभी कर्मवीरों की जीत है।
यह प्रकरण न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संकल्प, सेवा और संघर्ष से न्याय की राह जरूर मिलती है।