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उल्हासनगर में धार्मिक अधिकारों की अनदेखी पर मुस्लिम समाज का फूटा गुस्सा – दफनभूमि के लिए आंदोलन उग्र, आमरण अनशन जारी


उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा

उल्हासनगर महानगरपालिका के प्रशासनिक रवैये से नाराज़ मुस्लिम समाज का आक्रोश अब सार्वजनिक आंदोलन और धार्मिक चेतना का रूप ले चुका है। दफनभूमि की मंजूरी को लेकर लंबे समय से संघर्षरत मुस्लिम जमात सेवा फाउंडेशन के नेतृत्व में महापालिका मुख्यालय पर आठ दिन से आमरण अनशन चल रहा है। समाज की मांग है कि कब्रिस्तान के लिए आरक्षित भूखंड को तत्काल अंतिम मंजूरी दी जाए।



📌 1974 से लंबित – धार्मिक अधिकारों की उपेक्षा?

शहर के विकास आराखड़े में 1974 से प्लॉट नंबर 244 को कब्रिस्तान के लिए आरक्षित किया गया है। इस भूखंड को 2019 में अधिकृत दफनभूमि का दर्जा भी दिया गया था, लेकिन आज तक महापालिका द्वारा आखिरी मंजूरी नहीं दी गई। इस अनदेखी को मुस्लिम समाज ने अपने धार्मिक अधिकारों पर सीधा हमला बताया है।



🔥 आंदोलन के आठवें दिन उग्र हुआ विरोध:

मुस्लिम जमात सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष जलील खान, कार्याध्यक्ष शकील खान और अनिलकुमार सिन्हा के नेतृत्व में शुरू हुआ आमरण अनशन अब जनसामान्य का समर्थन प्राप्त कर उग्र रूप ले चुका है। शुक्रवार की नमाज़ के बाद सैकड़ों लोग आंदोलन स्थल पर जमा हुए और नारेबाजी कर प्रशासन के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया।



🚪 गेट बंद आंदोलन – महापालिका का कार्य ठप

शुक्रवार को कैलाश कॉलोनी के युवाओं ने अचानक महापालिका मुख्यालय के दोनों गेट बंद कर दिए, जिससे कार्यालय का सामान्य कामकाज रुक गया। इस अप्रत्याशित विरोध को देखते हुए मध्यवर्ती पुलिस थाने की टीम मौके पर पहुँची, जहाँ वरिष्ठ निरीक्षक शंकर अवताडे ने समझौते की कोशिश की, लेकिन कोई हल नहीं निकला।



🗣️ “उपोषण बंद करो, तभी पत्र मिलेगा” – अधिकारी का कथित बयान बना आक्रोश का कारण

जब मुस्लिम जमात सेवा फाउंडेशन के अनिलकुमार सिन्हा ने उपायुक्त गवस से मुलाकात की, तब गवस ने कथित रूप से कहा कि:

> “जब तक आमरण उपोषण बंद नहीं किया जाता, कोई पत्र या मंजूरी नहीं दी जाएगी।”



इस बयान के बाद समाज में और अधिक गुस्सा भड़क उठा, और यह स्पष्ट कर दिया गया कि:

> “जब तक कब्रिस्तान की मंजूरी नहीं मिलेगी, तब तक उपोषण जारी रहेगा – चाहे कुछ भी हो जाए।”




✊ राजनीतिक समर्थन से आंदोलन को बल

इस संघर्ष को अब राजनीतिक समर्थन भी मिलने लगा है।

उद्धव बालासाहेब ठाकरे गट की ओर से धनंजय बोराडे और राधाकिशन करोठिया

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की ओर से शिवाजी रगाडे, कमलेश निकम ने आंदोलन को खुला समर्थन दिया है।



🕊️ सवाल बड़ा है – क्या धार्मिक अधिकारों को मान्यता मिलेगी?

यह आंदोलन अब सिर्फ एक भूखंड की लड़ाई नहीं, बल्कि धार्मिक अधिकार, पहचान और सम्मान की माँग बन चुका है।
मुस्लिम समाज का सवाल है:

> “जब एक अधिकृत भूखंड को दफनभूमि के लिए मंजूरी दी जा चुकी है, तो फिर यह देरी क्यों?”



📢 अब पूरा शहर देख रहा है कि क्या उल्हासनगर महापालिका धार्मिक अधिकारों का सम्मान करेगी या उपेक्षा जारी रखेगी। आंदोलन तेज़ हो चुका है – और निर्णय की घड़ी नज़दीक।

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