DCP ज़ोन-4 की ‘सफलता’ पर सवाल—काग़ज़ी कारवाई या अपराध-मुक्ति का छलावा?

उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा
DCP ज़ोन-4 की दैनिक प्रेस-रिलीज़ों में “बड़ी कार्यवाही”, “एक और आरोपी गिरफ्तार”, “दारू की बोतलें जब्त”, “जुए के अड्डे पर छापा” जैसे दावों की भरमार है। आँकड़ों से लगता है मानो पुलिस चौकस है और अपराध पर शिकंजा कस चुका है। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही कहानी बयां करती है।
ग्राउंड रिपोर्ट: खुलेआम फल-फूल रहे है छूट पुट गुंडे
जुए और मटके के अड्डे बेरोक-टोक चल रहे हैं।
लॉज-इन-बोर्डिंग की आड़ में देह-व्यापार बेख़ौफ़ जारी है।
ड्रग्स, चरस, गांजा की खुलेआम बिक्री।
दबंगों और वसूली गैंग की बेलगाम दहशत।
नशेड़ी और ड्रग-माफिया बेरोकटोक आवाजाही कर रहे हैं।
सबसे चिंताजनक—झूठी FIR का बढ़ता चलन
राजनीतिक रंजिश, निजी दुश्मनी या उगाही के लिए झूठी FIR दर्ज कराना आम हो चुका है। कई मामलों में जब सच्चाई सामने आती है तो पुलिस बैकफुट पर जाती दिखती है, लेकिन तब तक निर्दोषों की ज़िंदगी उलझ जाती है।
सवाल—क्या DCP कार्यालय इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम उठा रहा है?
‘तीन घंटे में चार्जशीट’ बनाम ‘असली अपराध’
हाल में एक केस में मात्र तीन घंटे में चार्जशीट दाख़िल कर दी गई—यह प्रशंसनीय रफ़्तार काबिल-ए-तारीफ़ है। मगर यही त्वरित कार्रवाई शहर में फैले संगठित अपराध, नशाखोरी और देह-व्यापार पर क्यों नज़र नहीं आती?
प्रेस नोट बनाम जमीनी नियंत्रण—जनता के तीखे प्रश्न
1. क्या शहर में वास्तविक अपराध घट रहे हैं या केवल आंकड़ों का खेल चल रहा है?
2. झूठी FIR की जाँच क्या निष्पक्ष और पारदर्शी तरीक़े से हो रही है?
3. नशा, देह व्यापार और संगठित अपराध पर सख़्त कार्रवाई कब दिखेगी?
4. लाइसेंसी होटल पर दबिश और ग़ैर-कानूनी धंधों पर ढील—यह दोहरा मापदंड क्यूँ?
जनता की चेतावनी—“दिखावे से नहीं, न्याय से भरोसा मिलेगा”
यदि पुलिस की प्राथमिकता केवल प्रेस नोट और आँकड़े रह जाएगी, तो असली अपराधी खुलेआम घूमते रहेंगे और कानून-व्यवस्था एक भ्रम बनकर रह जाएगी।
उल्हासनगर की आवाज़ कहती है—अब वक्त है कि DCP ज़ोन-4 प्रेस-क्लिपिंग से बाहर आकर उन मंचों तक पहुँचे जहाँ न्याय अभी तक नहीं पहुँच पाया है।