ArticleAwarenessBreaking NewsCongressCongress PartyElectionheadlineHeadline TodayKalaniMNSNCP(Ajit Dada Pawar)NCP(Sharad Pawar)Pappu KalaniRaj ThackerayRPIRTI ActivistShaurya TimesShiv Sena ShindeShiv Sena UddhavSocialThaneTOKtrendingUlhasnagarUlhasnagar Breaking NewsUMC Breaking newsUnder DCP Zone-4Viral Video

उल्हासनगर मनपा चुनाव 2025 पर संकट के बादल — सभी प्रमुख पार्टियां दिशाहीन, जनता ओर इच्छुक उम्मीदवार असमंजस में


उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा

उल्हासनगर महानगरपालिका चुनाव 2025 को अब महज़ तीन—चार महीने शेष हैं, लेकिन शहर की राजनीतिक स्थिति पूरी तरह से दिशाहीन और भ्रमित करने वाली बनी हुई है। इच्छुक उम्मीदवार अभी तक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि किस पार्टी से जुड़कर चुनावी मैदान में उतरें और किस समीकरण से अपनी जीत सुनिश्चित करें। शहर की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की हालत कुछ यूं है कि न तो कोई स्पष्ट नेतृत्व दिख रहा है और न ही संगठनात्मक स्थिरता।

🔹 बीजेपी:

अध्यक्ष बदला, पर निष्क्रियता जस की तस


उल्हासनगर भाजपा में एक महीने पहले ही अध्यक्ष पद पर बदलाव हुआ है, लेकिन नए अध्यक्ष राजेश वधारिया के कार्यकाल में अभी तक न तो कोई कार्यकारिणी घोषित हुई है और न ही कार्यकर्ताओं या आम नागरिकों को कोई ठोस दिशा मिल रही है। वध्रैया द्वारा सवाल पूछने पर “It’s none of your business” जैसी प्रतिक्रिया देना, पार्टी के भीतर संवादहीनता और नेतृत्व संकट को उजागर करता है। जब चुनाव सर पर हैं, तब पार्टी पदाधिकारियों और आम जनता को मार्गदर्शन की आवश्यकता है, जो पूरी तरह नदारद है।

🔹 शिवसेना (शिंदे गुट):

1.5 साल से कार्यकारिणी नहीं
करीब डेढ़ साल पहले उल्हासनगर की शिवसेना (शिंदे गुट) की कार्यकारिणी भंग कर दी गई थी। लेकिन इतने समय बाद भी न तो कोई नई शहर प्रमुख नियुक्त हुई और न ही कोई ठोस संगठनात्मक ढांचा तैयार हो पाया है। ऐसे में आगामी मनपा चुनाव में शिवसेना से जुड़े मतदाता जाएं तो कहां जाएं? यदि कार्यकर्ताओं को शिकायत करनी हो, तो वे किससे करें?

🔹 एनसीपी (अजित पवार गुट):

नेतृत्वहीन और निष्क्रिय


अजित पवार गुट की स्थिति उल्हासनगर में दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। पूर्व शहर अध्यक्ष भारत राजवानी ने पार्टी से इस्तीफा देकर महायुती उम्मीदवार कुमार ऐलानी के खिलाफ चुनाव लड़ा और हार का सामना किया। अब इस गुट में न तो कोई प्रभावी चेहरा है और न ही जमीनी संगठन।

🔹 एनसीपी (शरद पवार गुट):

कलानी परिवार की साख डगमगाई


एनसीपी शरद पवार गुट की स्थिति भी अलग नहीं है। ओमी कलानी, जो कभी भाजपा में थे, फिर बाहर आए, बाद में एनसीपी से चुनाव लड़े लेकिन हार गए। नीतियों में बार-बार बदलाव और गठबंधन को लेकर भ्रमजनक रवैया जनता को निराश कर रहा है। कभी भाजपा, कभी शिवसेना — कलानी परिवार का रुख अब जनता के लिए भरोसेमंद नहीं रहा।

🔹 शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट):

भविष्य अनिश्चित


शहर में यह गुट तब तक सक्रिय दिखाई दे रहा है, जब तक धनंजय बोडारे पार्टी में मौजूद है। सूत्रों के अनुसार, बोडारे जल्द ही शिंदे गुट में शामिल हो सकते हैं। ऐसे में उद्धव गुट का आधार और भी कमजोर होता दिख रहा है।

🔹 मनसे:

समर्थन नीति में स्पष्टता का अभाव
मनसे का भी उल्हासनगर में रुख अस्पष्ट है। कभी एमपी चुनाव में डॉ. श्रीकांत शिंदे को समर्थन, तो कभी विधान परिषद चुनाव में निरंजन डावखरे का समर्थन। फिर आमदार चुनाव में भगवान भालेराव को टिकट देना — ये सभी फैसले दर्शाते हैं कि पार्टी का कोई निश्चित रुख नहीं है

🔹 कांग्रेस:


मनसे का भी उल्हासनगर में रुख अस्पष्ट है। कभी एमपी चुनाव में डॉ. श्रीकांत शिंदे को समर्थन, तो कभी विधान परिषद चुनाव में निरंजन डावखरे का समर्थन। फिर आमदार चुनाव में भगवान भालेराव को टिकट देना — ये सभी फैसले दर्शाते हैं कि पार्टी का कोई निश्चित रुख नहीं है

🔹 कांग्रेस:

ठंडा माहौल, निष्क्रिय संगठन


देशभर की तरह उल्हासनगर में भी कांग्रेस का माहौल एकदम ठंडा है। न कोई बड़ा कार्यक्रम, न कोई प्रभावशाली चेहरा — कार्यकर्ताओं में जोश की कमी साफ देखी जा सकती है।

🔹 अन्य छोटी पार्टियां: अनिश्चितता का माहौल


उल्हासनगर में कई छोटी-छोटी पार्टियां भी सक्रिय हैं, लेकिन उनकी स्थिति भी असमंजस भरी है। इनमें से अधिकांश पार्टियों का न तो कोई स्पष्ट नेतृत्व है और न ही संगठनात्मक ढांचा। ये पार्टियां स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने का दावा तो करती हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं की कमी और रणनीति के अभाव में उनका प्रभाव नगण्य दिखाई देता है। मतदाताओं के बीच इनका आधार सीमित है, जिसके चलते ये पार्टियां चुनाव में कितना प्रभाव डाल पाएंगी, यह एक बड़ा सवाल है।




👉 निष्कर्ष:
आगामी उल्हासनगर महानगरपालिका चुनाव 2025 में जहां जनता को बदलाव की उम्मीद है, वहीं शहर की प्रमुख पार्टियों की कार्यप्रणाली और निष्क्रियता ने चुनाव को लेकर गंभीर आशंकाएं खड़ी कर दी हैं। संगठनहीनता, नेतृत्व संकट और बार-बार बदलती रणनीतियों ने मतदाताओं को असमंजस में डाल दिया है।
क्या वाकई में यह चुनाव जनहित की दिशा में सफल होगा या फिर दिशाहीन राजनीति का शिकार बन जाएगा?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights