DCP Zone-4 उल्हासनगर में कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल — FIR से गांजा और बाकी आरोपियों का ज़िक्र गायब, FIR में फिर्यादी का नाम भी नहीं ? क्यों इस केस में हर बात से इस तरह गुमराह किया जा रहा है?

उल्हासनगर प्रतिनिधि : नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर शहर में कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा करने वाला एक मामला सामने आया है, जिसमें पुलिस की कार्रवाई पर कई गंभीर आरोप लग रहे हैं। उपलब्ध वीडियो फुटेज में साफ़ तौर पर पाँच आरोपी नज़र आ रहे हैं। वीडियो में यह भी स्पष्ट दिखाई देता है कि एक आरोपी के हाथ में गांजे की खेप मौजूद है, जबकि पुलिसकर्मी मौके पर मौजूद हैं। इसके बावजूद, दर्ज की गई FIR में गांजे का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है।
DCP जोन-4 सचिन गोरे के संज्ञान में होने के बावजूद, पाँच में से केवल एक आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। वीडियो में दिख रहे अन्य चार आरोपियों को रातभर पुलिस कस्टडी में रखने के बाद भी FIR में उनका नाम दर्ज नहीं किया गया और न ही उनके खिलाफ कोई मामला बनाया गया।
FIR के अनुसार, एकमात्र आरोपी के पास से लोहे की ‘कुकरी’ (हथियार) बरामद हुई और महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 37(1), 135 एवं हथियार अधिनियम 1959 के तहत मामला दर्ज कर आरोपी को आधारवाड़ी जेल भेजा गया। लेकिन वीडियो में साफ़ दिखाई देने वाला गांजा, जो NDPS एक्ट के तहत गंभीर अपराध है, उस पर FIR में कोई उल्लेख नहीं है।
संपत्ति विवाद और पुलिस की भूमिका पर सवाल ?
जानकारी के अनुसार, जिस संपत्ति पर यह घटना हुई, वह पहले से ही अवैध प्रवेश (trespass) के मामले में कोर्ट में लंबित है। इसके बावजूद, वहां खुलेआम कानून और व्यवस्था का उल्लंघन हो रहा था। वीडियो में आरोपी खुलेआम DCP सचिन गोरे का नाम लेते हुए कह रहा है कि यह कार्रवाई उनकी जानकारी में हो रही है।
नागरिकों और संगठनों के आरोप
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि यह मामला पुलिस की मिलीभगत और कानून के दोहरे मानकों का उदाहरण है। FIR से फिर्यादी का नाम भी गायब है, जिससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर और संदेह गहराता है।
चौंकाने वाली बात यह है कि फिर्यादी को हिललाईन पुलिस स्टेशन से कॉल कर संपत्ति हैंडओवर करने की बात कही जा रही है, जबकि मामला सिविल केस के रूप में पहले से कोर्ट में है। इससे पुलिस की अनुचित दखलअंदाजी और मामले को गुमराह करने की कोशिश के आरोप और मजबूत हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, कॉल रिकॉर्डिंग में यह भी सामने आया है कि ऊपर से दबाव होने की बात कही जा रही है।
अब सवाल यह है कि क्या इस पूरे मामले में उच्च स्तरीय जांच होगी और लापरवाही या संरक्षण देने वालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी अन्य संवेदनशील मामलों की तरह फाइलों में दबा दिया जाएगा।