विठ्ठलवाडी जकात नाका घोटाला: सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा – शिवसेना (शिंदे गुट) के संरक्षण में भ्रष्ट अधिकारी गणेश शिंपी की मिलीभगत उजागर!

उल्हासनगर प्रतिनिधि : नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर के विठ्ठलवाडी रेलवे स्टेशन से सटी महाराष्ट्र शासन की मालकी वाली सरकारी भूमि पर स्थित पुराना जकात नाका — जो करीब 12 से 15 वर्षों से बंद और जर्जर हालत में पड़ा था — अब राजनीतिक संरक्षण और मनपा के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से हड़प लिया गया है।
यह प्रकरण अब शहर में भारी चर्चा और आक्रोश का विषय बना हुआ है।
🔥 जकात नाका बना अवैध निर्माण का अड्डा
स्थानीय व्यापारियों के अनुसार, इस जकात नाका पर हाल ही में आर.सी.सी. स्ट्रक्चर के रूप में अवैध निर्माण कार्य शुरू किया गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि यह अवैध निर्माण शिवसेना (शिंदे गुट) के एक माजी नगरसेवक की शाखा के ठीक सामने किया गया, लेकिन किसी भी राजनीतिक नेता ने न तो इसका विरोध किया और न ही प्रशासन ने कोई कार्रवाई की।
इससे स्थानीय व्यापारी वर्ग में गहरा रोष है।
💸 भ्रष्ट अधिकारी गणेश शिंपी की भूमिका पर गंभीर आरोप
इस पूरे घोटाले के पीछे मुख्य सूत्रधार बताया जा रहा है उल्हासनगर महानगरपालिका का कुख्यात और विवादित अधिकारी गणेश शिंपी, जो पहले 1/5 अतिक्रमण विभाग में उपायुक्त के पद पर कार्यरत था।
सूत्रों के अनुसार, गणेश शिंपी ने स्थानीय राजनीतिक नेताओं और भूमाफिया से मिलीभगत कर इस सरकारी जमीन को हड़पवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यही कारण है कि उसकी भ्रष्ट गतिविधियों और विवादों के चलते उसे हाल ही में पद से हटा दिया गया है।
इस घोटाले के बाद ‘कायद्याने वागा लोकचळवळ’ नामक सामाजिक संस्था ने मनपा आयुक्त मनिषा आवाळे को भी कठघरे में खड़ा किया है।
संस्था का कहना है कि “गणेश शिंपी जैसे भ्रष्ट अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाना, शहर के विनाश को आमंत्रण देने जैसा है।”
अब उनकी जगह कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी श्री धीरज चव्हाण को अतिक्रमण नियंत्रण के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है।
🕉️ देवी के नाम पर अवैध कब्ज़ा – धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़
स्थानीय नागरिकों में आक्रोश इस बात को लेकर भी है कि हड़पी गई इस सरकारी जमीन पर ही नवरात्र महोत्सव का आयोजन किया गया।
लोगों का कहना है —
“देवी के नाम पर अवैध कब्ज़ा करना धार्मिक आस्था का अपमान है। यह धार्मिक भावना नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार को ढकने की चाल है। अगर देवताओं के नाम पर अवैध काम होंगे, तो यह पवित्रता का नहीं, अधर्म का प्रतीक है।”
⚖️ प्रशासनिक कार्रवाई के संकेत – क्या सच में होगी कार्यवाही?
इस घोटाले की शिकायत उपविभागीय अधिकारी (प्रांत कार्यालय) और तहसीलदार कार्यालय तक पहुँच चुकी है।
दोनों विभागों ने अवैध निर्माण पर कार्रवाई के संकेत तो दिए हैं, लेकिन स्थानीय नागरिकों को अब भी संदेह है कि क्या प्रशासन वास्तव में प्रभावशाली राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों के खिलाफ कदम उठाएगा।
फिर भी तक्रारदारों और व्यापारियों ने राहत की सांस ली है कि मामला अब शासन स्तर पर पहुंच गया है।
🚨 व्यापारियों की मांग – पुलिस चौकी की जगह अब बना अवैध ढांचा
स्थानीय व्यापारी वर्षों से इस स्थान पर पुलिस चौकी की स्थापना की मांग करते आ रहे थे, ताकि विठ्ठलवाडी स्टेशन क्षेत्र में बढ़ते अपराधों पर नियंत्रण हो सके।
परंतु प्रशासन और राजनेताओं ने इस जनहित की मांग को वर्षों तक अनसुना किया।
अब वही जमीन राजकीय सौदेबाजी और भ्रष्टाचार का शिकार बनकर अवैध निर्माण में तब्दील हो चुकी है।
🏗️ कल्याण-अंबरनाथ रोड पर अन्य दुकानों का विध्वंस, पर एक पर ‘कृपा दृष्टि’ क्यों?
स्थानीय लोगों का बड़ा सवाल यह है कि कल्याण-अंबरनाथ रोड पर कई दुकानों को अवैध बताते हुए तोड़ दिया गया, लेकिन उसी क्षेत्र में स्थित इस जकात नाके की जमीन किसी “विशेष व्यक्ति” को सौंप दी गई!
क्या यह राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है?
क्या यह प्रशासनिक दोहरा मापदंड नहीं है?
❓ क्या शिवसेना (शिंदे गुट) के संरक्षण में चल रहा है यह पूरा खेल?
सूत्रों के मुताबिक, राज उर्फ राजू नामक व्यक्ति, जिसने इस जकात नाके पर अवैध निर्माण करवाया है, शिवसेना (शिंदे गुट) के कुछ स्थानीय नेताओं का करीबी बताया जा रहा है।
अब सवाल यह उठता है —
👉 क्या यह पूरा प्रकरण शिंदे गुट के “आशीर्वाद” से हो रहा है?
👉 क्या भ्रष्ट अधिकारी गणेश शिंपी और राजकीय नेताओं ने मिलकर शासन की जमीन को हड़पने की साज़िश रची है?
👉 और क्या प्रशासन इस मिलीभगत पर आंखें मूंदे बैठा है?
जनता की माँग – पारदर्शी जाँच और कठोर कार्रवाई आवश्यक
शहर के नागरिकों और व्यापारियों की एक ही माँग है —
➡️ इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जाँच की जाए,
➡️ गणेश शिंपी सहित सभी दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए,
➡️ और हड़पी गई सरकारी जमीन को तत्काल मुक्त कराया जाए।
उल्हासनगर के लिए यह मामला केवल एक सरकारी भूमि विवाद नहीं, बल्कि यह भ्रष्ट तंत्र बनाम जनता के अधिकारों की लड़ाई बन चुका है।
अब देखने वाली बात यह है कि —
क्या प्रशासन सच में कार्रवाई करेगा या फिर शिवसेना (शिंदे गुट) और भ्रष्ट अधिकारियों का संरक्षण एक बार फिर न्याय पर भारी पड़ेगा?






