सिंधु भवन में 26 अप्रैल को प्रस्तावित कार्यक्रम स्थगित, स्थानीय समाज में विरोध के बाद लिया गया निर्णय।

उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर के सिंधु भवन में 26 अप्रैल को ख्रिश्चन समाज और उनके अनुयायियों द्वारा एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन प्रस्तावित था। लेकिन कार्यक्रम की घोषणा के बाद उल्हासनगर के सकल हिंदू समाज के समन्वयक श्री निखिल गोळे ने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराया।
जैसे ही यह जानकारी सामने आई, स्थानीय सिंधी समाज में असंतोष की लहर दौड़ गई। समाज के लोगों ने सवाल उठाए कि क्या सिंधु भवन—जो विशेष रूप से सिंधी भाषा-भाषी समाज की संस्कृति, सभ्यता और भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए निर्मित है—उसे धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल किया जाना उचित है?
स्थानीय नागरिकों का कहना था कि इस प्रकार के आयोजनों से सिंधु भवन के मूल उद्देश्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। साथ ही यह भी चर्चा का विषय बना रहा कि जब कार्यक्रम की सार्वजनिक घोषणा कई दिन पहले की जा चुकी थी, तब उल्हासनगर महानगरपालिका ने इसकी अनुमति कैसे प्रदान की।
इस मुद्दे को लेकर सिंधी समाज, सर्वदलीय नेता, विभिन्न सामाजिक संस्थाएं और सभी प्रमुख संगठनों ने एकजुट होकर विरोध जताया। पुलिस प्रशासन से पत्राचार किया गया और आंदोलन की चेतावनी भी दी गई। सकल समाज के पदाधिकारियों ने सभी समुदायों को संगठित कर इस मुद्दे पर एक स्वर में अपनी आपत्ति जताई।
आख़िरकार, जनभावनाओं और विरोध को गंभीरता से लेते हुए उल्हासनगर महानगरपालिका ने आयोजनकर्ताओं को पत्र जारी कर 26 अप्रैल को होने वाला यह कार्यक्रम स्थगित करने का निर्णय लिया है।
यह फैसला स्थानीय समाज की एकता और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।