बड़ी खबर: उल्हासनगर में पानी के मीटर लगाने पर बवाल, नागरिक असंतोष चरम पर — क्या होगा अगला कदम?

उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर महानगरपालिका (UMC) द्वारा पानी की आपूर्ति में पारदर्शिता और नियंत्रण लाने के उद्देश्य से शुरू की गई पानी के मीटर लगाने की योजना अब शहर में नए विवाद का केंद्र बन गई है। नागरिकों के बीच बढ़ती नाराजगी और सामाजिक संगठनों की सक्रियता ने सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या पूर्व नगरसेवक और सामाजिक संस्थाएँ इस फैसले के विरोध में सड़कों पर उतरेंगी?
पानी की अधिक आपूर्ति के बावजूद नागरिक प्यासे — असल वजह क्या?
उल्हासनगर को प्रतिदिन 140 मिलियन लीटर पानी (MLD) मिल रहा है, जबकि आवश्यकता मात्र 100 MLD की है। इसके बावजूद, शहर के कई इलाकों में अनियमित आपूर्ति और पानी की कमी की शिकायतें आम हैं। UMC आयुक्त मनीषा आव्हाले का कहना है कि अवैध नल कनेक्शन और अनियमित खपत इसकी मुख्य वजह हैं। इन्हीं समस्याओं से निपटने के लिए अब मीटर आधारित बिलिंग प्रणाली लागू की जा रही है।
नया मीटर सिस्टम: सुविधा या अतिरिक्त बोझ?
नगरपालिका का दावा है कि मीटरिंग से जल अपव्यय पर रोक लगेगी और सभी को समान पानी मिलेगा। वहीं, स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि जब पहले से पानी की आपूर्ति असमान है, तो अब मीटर के जरिए उन पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाला जा रहा है। कई संगठनों का कहना है कि बिना व्यापक जनजागरूकता और नागरिक सहभागिता के यह कदम अमल में लाना तानाशाही जैसा है।
शहर में बढ़ता असंतोष: विरोध की आहट?
उल्हासनगर के कई सामाजिक संगठन और पूर्व नगरसेवक इस निर्णय के विरोध में खुलकर सामने आने लगे हैं। कुछ नेताओं ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि यदि नागरिकों की मांगों को अनसुना किया गया, तो वे व्यापक जन आंदोलन का रास्ता अपनाने से पीछे नहीं हटेंगे। विरोध की तैयारी को देखते हुए, उल्हासनगर में आने वाले दिनों में सामाजिक उथल-पुथल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
महानगरपालिका का बचाव: पारदर्शिता का वादा
UMC प्रशासन का कहना है कि मीटरिंग सिस्टम पूर्ण पारदर्शिता के साथ लागू किया जाएगा। आयुक्त मनीषा आव्हाले ने नागरिकों से संयम और सहयोग की अपील करते हुए कहा कि अवैध कनेक्शनों पर सख्त कार्रवाई अनिवार्य है ताकि सभी को न्यायसंगत जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इसके साथ ही, UMC द्वारा सर्वेक्षण और जनजागरूकता अभियानों की शुरुआत करने की भी घोषणा की गई है।
अगला मोर्चा: टकराव या समाधान?
अब सवाल यह है कि क्या नागरिक संगठनों और पूर्व जनप्रतिनिधियों का गुस्सा जन आंदोलन में तब्दील होगा, या फिर वार्ता और सहमति से कोई रास्ता निकलेगा। उल्हासनगर के नागरिकों की निगाहें आने वाले दिनों की हलचलों पर टिकी हुई हैं।