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उल्हासनगर में वाल्मीकि समाज के युवक के साथ जातीय अत्याचार, पुलिस प्रशासन से न्याय की मांग।

उल्हासनगर प्रतिनिधि : नीतू विश्वकर्मा 

राजेश पुरुस्वानी
प्रशांत पुरुस्वानी
पीड़ित: साहिल छजलान
ऑनलाइन कंप्लेंट



उल्हासनगर से एक अत्यंत गंभीर और चिंताजनक मामला सामने आया है, जिसमें वाल्मीकि समाज के एक युवक के साथ जातिसूचक अपशब्द कहे गए, मानसिक उत्पीड़न किया गया और उसे झूठे मुकदमे में फँसाने की धमकी दी गई। 

यह घटना उल्हासनगर-5 की आकाश कॉलोनी स्थित किंग एक्वा कंपनी (एक जल आपूर्ति संस्थान) से जुड़ी है। कंपनी के मालिक प्रशांत पुरस्वानी पर आरोप है कि उन्होंने 19 वर्षीय युवक साहिल छजलान को जबरन अपने यहाँ काम करने के लिए मजबूर किया। साहिल के अनुसार, वह पिछले 3-4 महीनों से इस कंपनी में कार्यरत था, लेकिन मालिक का व्यवहार लगातार अमानवीय होता गया। 

जातिसूचक गालियाँ और धमकियाँ


साहिल ने बताया कि उसने अपनी माँ के कहने पर मालिक से ₹9,800 की अग्रिम राशि ली थी, लेकिन अब प्रशांत पुरस्वानी उसी रकम को लेकर उसे प्रताड़ित कर रहे हैं। आरोप है कि वे न केवल साहिल को जातिसूचक शब्दों से अपमानित करते हैं, बल्कि उसे पीटने और झूठे चोरी के मुकदमे में फँसाने की धमकी भी दे रहे हैं। साहिल ने यह भी दावा किया कि उन्हें “ब्लैकमेलर” और “चोर” कहकर मानसिक प्रताड़ना दी गई। 

यह पूरा घटनाक्रम फोन कॉल की रिकॉर्डिंग में दर्ज है, जिसे साहिल ने उच्च अधिकारियों को ईमेल के माध्यम से भेजा है। 

पत्रकार को भी धमकी, समाज में आक्रोश


जब पत्रकार सोमवीर भगवान ने कंपनी से इस मामले पर प्रतिक्रिया माँगी, तो राजेश पुरस्वानी (मालिक के परिजन) ने उन्हें धमकाते हुए कहा, **”जो करना है, कर लो।”** इसके बाद साहिल को फिर से फोन पर धमकाया गया। 

इस घटना के सामने आते ही वाल्मीकि समाज में भारी आक्रोश फैल गया है। समाज के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे **एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम** के तहत गंभीर अपराध बताते हुए तत्काल कार्रवाई की माँग की है। 

**प्रशासन से न्याय की गुहार** 
हिल लाइन पुलिस स्टेशन, डीसीपी और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध किया गया है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए और पीड़ित युवक को न्याय दिलाया जाए। पीड़ित पक्ष की माँग है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि समाज में न्याय और समानता का भाव बना रहे। 

अब देखना यह है कि पुलिस प्रशासन इस **जातीय अत्याचार** के मामले में कितनी तत्परता से कार्रवाई करता है। जनभावना और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए यह एक निर्णायक परीक्षा बन गई है। 

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