उल्हासनगर मनपा चुनाव: चुनाव होगा या सिलेक्शन…? जनता पूछ रही है सवाल!

उल्हासनगर प्रतिनिधि : नीतू विश्वकर्मा
उल्हासनगर में आगामी मनपा चुनाव को लेकर एक बड़ा सवाल उठ रहा है – यह चुनाव वास्तव में ‘चुनाव’ होगा या केवल एक ‘सिलेक्शन’ की प्रक्रिया…? क्योंकि चुनाव का मतलब सिर्फ मतदान नहीं होता, बल्कि मुद्दों पर राजनीतिक टकराव और लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा भी जरूरी होती है।
चुनाव में जब राजनीतिक दलों के बीच विचारों की लड़ाई नहीं दिखती, विरोध की आवाज़ें दब जाती हैं और सभी पक्ष आपस में एकजुट नजर आते हैं, तो जनता का यह संदेह स्वाभाविक है कि कहीं यह सब केवल एक औपचारिकता तो नहीं बनता जा रहा?
🔍 एक नजर मौजूदा राजनीतिक हालात पर:
महाविकास आघाड़ी – जिसमें शिवसेना (उद्धव गुट), राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) और कांग्रेस शामिल हैं – पहले से ही एकजुट हैं।
वहीं, टीओके (कलानी समर्थित पार्टी), जो कभी भाजपा में विलीन हो चुकी थी, आज फिर उसी दिशा में बढ़ती नजर आ रही है।
लेकिन अब भाजपा के नए शहर अध्यक्ष राजेश वधरया, जो टीओके और कलानी परिवार के विरोधी माने जाते हैं, वह इस गठजोड़ को कितना सहन करेंगे – यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
🧩 पुराने चेहरे फिर से सक्रिय
पप्पू कलानी की राजनीतिक सक्रियता फिर से नज़र आने लगी है। यदि वह एक बार फिर अपने दम पर सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारें, तो 2002 का इतिहास दोहराया जा सकता है।
वहीं साई पक्ष, जो अब महायुती में है, अक्सर टिकट से वंचित नाराज़ उम्मीदवारों को जिताकर सत्ता की चाबी अपने पास रखने की रणनीति अपनाता रहा है।
🤝 कौन विरोधी है…?
शहर की राजनीति का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इस बार चुनाव में कोई किसी का सीधा विरोधी नजर नहीं आ रहा:
शिंदे गुट की शिवसेना, भाजपा, अजित पवार गुट की राकांपा, आरपीआई, साई पक्ष, टीओके — सभी एक ही मंच पर दिखाई दे रहे हैं।
शरद पवार और अजित पवार के संबंधों में सुधार, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच बढ़ती नजदीकियां — यह सभी घटनाएं यही दर्शा रही हैं कि आगामी चुनाव में विरोध के बजाय समझौते की राजनीति हावी हो सकती है।
📌 क्या होगा चुनाव का नया फॉर्मूला?
“तेरे सामने मेरा उम्मीदवार नहीं, मेरे सामने तेरा उम्मीदवार नहीं!”
यह राजनीति की वह रणनीति बनती जा रही है, जो लोकतंत्र को कमजोर करती है और जनता को विकल्पहीनता की ओर धकेलती है।
मराठी में एक कहावत है – “एक मेका सहाय्य करू, अवघे धरू सुपंथ”, यानी एक-दूसरे की मदद करते हुए सब मिलकर रास्ता आसान करें।
लेकिन जब यह कहावत राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल होने लगे, तब जनता को जागरूक होने की जरूरत है।
📣 जनता के लिए सवाल: क्या आप एक निष्पक्ष, मुद्दों पर आधारित चुनाव चाहते हैं? या फिर यह ‘सिलेक्शन’ की राजनीति आपको मंजूर है?
🗳️ तय कीजिए – लोकतंत्र को मजबूत करना है या समझौते की राजनीति को स्वीकार करना है!