“महाराष्ट्र को हिंदी नहीं, देश को मराठी की ज़रूरत” – एड. जय गायकवाड, संस्थापक अध्यक्ष, स्वराज्य संघटना।

उल्हासनगर : नीतू विश्वकर्मा
महाराष्ट्र में शालेय शिक्षण विभाग द्वारा लागू किए गए राज्य शालेय अभ्यासक्रम आराखडा 2024 के अंतर्गत, पहली कक्षा से ही हिंदी भाषा को अनिवार्य किए जाने का निर्णय लिया गया है। इस निर्णय का स्वराज्य संघटना ने तीव्र विरोध करते हुए कहा है कि यह महाराष्ट्र की भाषिक अस्मिता पर आघात है।
स्वराज्य संघटना के संस्थापक अध्यक्ष एड. जय गायकवाड ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “महाराष्ट्र की प्रशासनिक भाषा मराठी है, इसलिए किसी अन्य भाषा को अनिवार्य करना न केवल अन्यायकारक है बल्कि संविधानिक दृष्टि से भी अनुचित है।” उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के भूमिका का समर्थन करते हुए कहा कि “हिंदी की अनिवार्यता को तुरंत रद्द किया जाए।”
एड. गायकवाड ने आगे कहा, “अगर आप महाराष्ट्र का गहराई से अध्ययन करें तो यह स्पष्ट होता है कि देश के हर कोने से लोग यहाँ जीविका के लिए आते हैं और यहीं की अर्थव्यवस्था से अपने परिवार का जीवन चलाते हैं। ऐसे में महाराष्ट्र को हिंदी सिखाने की नहीं, बल्कि देश को मराठी सिखाने की ज़रूरत है।”
स्वराज्य संघटना की मांग है कि केंद्र सरकार को हिंदी की अनिवार्यता वापस लेकर, देशभर में मराठी भाषा को सिखाने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। इस संदर्भ में संगठन पत्राचार के माध्यम से सरकार से संपर्क करेगा और जनजागृती अभियान भी शुरू करेगा।
धर्म और जाति पर भी गायकवाड का तीखा सवाल
एड. जय गायकवाड ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत को चुनौती देते हुए कहा, “अगर आप सच में जातिव्यवस्था खत्म करना चाहते हैं, तो सिर्फ एक मंदिर, एक स्मशान या एक कुआँ कहने से कुछ नहीं होगा। आपको चाहिए कि भारत के सभी हिंदुओं को ब्राह्मण घोषित करें और जातियों को पूरी तरह समाप्त करें। स्वराज्य संघटना इस निर्णय में आपके साथ खड़ी होगी।”
गायकवाड का यह वक्तव्य हिंदू समाज में समरसता और एकता की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उनका कहना है कि जब तक समाज में जातीय भेदभाव रहेगा, तब तक सच्चे सामाजिक सुधार की बात अधूरी ही रहेगी।